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यह सम्यक संस्कृति में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गांव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देता है। यहां 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी विद्वान यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने कई वर्षों तक यहां सम्यक संस्कृति व दर्शन की शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत व संस्मरणों में नालंदा के विषय में काफी कुछ लिखा है। ह्वेनसांग ने लिखा है कि सहस्रों छात्र नालंदा में अध्ययन करते थे और इसी कारण नालंदा प्रख्यात हो गया था। दिन भर अध्ययन में बीत जाता था । विदेशी छात्र भी अपनी शंकाओं का समाधान करते थे। इत्सिंग ने लिखा है कि विश्वविद्यालय के विख्यात विद्वानों के नाम विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर श्वेत अक्षरों में लिखे जाते थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, बर्मा, मलेशिया, लंका जैसे अन्य देशों से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षा प्राप्त छात्र बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। यह विश्व का प्रथ पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और विहार थे। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां बनी हुई हैं। केंद्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आंगन में एक कुआं बना था। आठ विशाल भवन, दस विहार, प्रत्येक विहार में भगवान बुद्ध की मूर्ति, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीले भी थीं। लेकिन सम्यक काल की इतने भव्य और ज्ञानप्रद विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने धावा बोलकर नष्ट क्यों किया? (Next part) (नष्ट करने का समय पर कुछ लोगों की मान्यता 1199 ईस्वी है तो कुछ लोगों की मान्यता 1203 ईस्वी है) #revolutiondhamma #ancienthistory #buddha #buddhist #buddhism
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